Kedarnath Travel Guide
मैं हूँ केदार
क्या खूबसूरत रिश्ता है मेरे और मेरे प्रभु केदारनाथ का मैं प्रभु से कभी कुछ मांगता नहीं, प्रभु कभी कम देते नहीं
केदारनाथ – एक ऐसी पवित्र जगह जो उत्तराखंड के हिमालय की घाटिओं में स्थित है । जहाँ पर पहुंचना सभी का एक सपना होता है और क्यों न हो।
- १२ ज्योतिर्लिंगों में सबसे कठिन यात्रा,
- चार धामों में एक धाम,
- हिमालय की गोद में बसा मंदिर
- और मन्दाकिनी नदी की सुंदरता कुछ ऐसी है की हर कोई एक बार भगवान् शिव के दर्शन करना चाहता है।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह मंदिर मन्दाकिनी के किनारे बसा है। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है और बाहर नंदी भगवान विराजमान है।
पैदल चलने के शौकीन नयी पीढ़ी हो या कोई वृद्ध हर कोई बाबा के दर्शन करना चाहता है। केदारनाथ ट्रेक अद्भुत रूप से सुन्दर और काफी खूबसूरत है, यहां की हवाओं में आपको भगवान भोलेनाथ की एक अलग ही सुखद लहर का अनुभव होता है। जिसको शब्दों में बताना असम्भव है। केदारनाथ में आपको शिव भक्ति और एडवेंचर का एक शानदार अनुभव होता है। केदारनाथ हर इंसान को ज़िन्दगी में एक बार जरूर करना चाहिेए।
केदारनाथ ट्रेक करते समय आपको यहां की प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव होता है। जिसके लिए हर साल पर्यटक यहां आते है। इतनी सुन्दर जगह जहाँ हर कोई जाना चाहता है ।
केदारनाथ जाने की सही प्लानिंग, रूट, वहां रहने और खाने की व्यवस्था और कुल खर्च के साथ आस पास कौन कौन से पर्यटक स्थल आप कवर कर सकते हैं इसी पर है आज का विशेष एपिसोड –
मैं हूँ केदार।
तो चलिए बढ़ते हैं एपिसोड में आगे :
केदारधाम की हमारी यात्रा शुरू होती है चारधाम रजिस्ट्रेशन के साथ। सबसे पहले आपको दिए गए पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर लेना है और इसका सॉफ्ट / हार्ड कॉपी लेकर अपनी एक ID के साथ रखकर आपका सफर शुरू होता है। सबसे पहले हरिद्वार और ऋषिकेश होते हुए पहाड़ की यात्रा करते हुए पहुँचते हैं, सोनप्रयाग और फिर गौरीकुंड। रास्ते में प्रकृति के सुन्दर नज़ारे और कुछ प्रसिद्ध स्थान आपको देखने को मिलते हैं । जिनके बारे में हम थोड़ा – थोड़ा बताते हुए चलेंगे।
दिल्ली से केदारनाथ जाते समय सबसे प्रसिद्ध स्थानों में हरिद्वार और ऋषिकेश है । जहाँ से माँ गंगा का आर्शीवाद लेकर आप आगे की यात्रा कर सकते हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश में रहने और खाने की बात करें तो आराम से आपको होटल और खाने के विकल्प मिल जाते हैं। हमने रात्रि विश्राम किया निर्मल आश्रम ऋषिकेश में जहाँ पर रुकने के लिए आपको आश्रम के किसी की परिचित का Reference देना पड़ता है । आश्रम में लोगों का सेवाभाव और परोपकार की भावना काबिलेतारीफ है । ऋषिकेश में इसके साथ हमारा अनुभव काफी अच्छा रहा।
ऋषिकेश और हरिद्वार में मुख्य पर्यटक स्थलों में हमने पहले ही चैनल पर वीडियो अपलोड किया है आप उससे भी जानकारी ले सकते हैं।
केदारनाथ यात्रा प्रारम्भ होती है ऋषिकेश से जिसे चार धाम यात्रा का द्वार भी कहा जाता है। ऋषिकेश से सुबह जितनी जल्दी हो सके आप निकल लें क्योंकि आपको अपना लक्ष्य गौरकुंड या सोनप्रयाग रखें । सूर्यास्त से पहले वहां पहुंचने का प्लान करें। गूगल मैप से टाइमिंग जरूर देखें लेकिन २-3 घंटे का अतिरिक्त समय लेकर चलें साथ ही कुछ समय रास्ते में पड़ने वाले स्थानों को देखने के लिए भी रखना है।
गूगल मैप की बात करें तो ऋषिकेश से सोनप्रयाग की दूरी लगभग 210 km और समय 7 – 8 घंटे का समय आपको लग सकता है क्योंकि हमें रास्ते में पड़ने वाले स्पॉट्स भी कवर करने हैं तो २-३ घंटे का अतिरिक्त समय लेकर आपको चलना पड़ेगा। कभी कभी रास्ते में होने वाले लैंड-स्लाइड की वजह से भी यात्रा में अधिक समय लग सकता हैं। ऋषिकेश से केदारनाथ की यात्रा में आपका लक्ष्य गौरीकुंड या सोनप्रयाग पहुंचने का होता है । जिससे आप अगली सुबह जल्द से जल्द बाबा के धाम तक पहुंच सकें ।
जैसे ही आप ऋषिकेश से निकलते हैं तो आपको रास्ते में प्रकृति की सुंदरता मन्त्रमुघ करने लगती है । कोई नदी किनारे, कोई सड़क के किनारे और कुछ लोग ऊंचे पहाड़ों की फोटोज क्लिक करते हुए आगे बढ़ते हैं । ऐसे में समय का पता नहीं चलता। ऋषिकेष से रुद्रप्रयाग तक आल वेदर रोड का भी अपना एक आनंद है । लेकिन कही – कही लैंड स्लाइड देखने को मिल ही जाता है। ऋषिकेष से सोनप्रयाग की ओर निकलकर आप सबसे पहले देवप्रयाग पर रुकें और पांच प्रयागों में एक प्रयाग के दर्शन जरूर करें । यहाँ पर अलकनंदा और भागीरथी नदी मिलकर गंगा नदी बन जाती है।
यहां पर बात कर लेते हैं उत्तराखंड के पंच प्रयागों की जो मुझे लगता है कि यात्रा से पहले आपको जानने आवश्यक हैं :
- विष्णुं प्रयाग – जहां पर अलकनंदा और धौलीगंगा आकर मिलती है ।
- नंदप्रयाग – जहाँ पर अलकनंदा और नंदाकिनी आकर मिलती है ।
- कर्णप्रयाग – जहाँ पर अलकनंदा और पिंडर नदी आकर मिलती है ।
- रूद्रप्रयाग – जहाँ पर अलकनंदा और मन्दाकिनी आकर मिलती हैं ।
- देवप्रयाग – जहाँ पर अलकनंदा और भागीरथी आकर मिलती है और यहां से आगे आप और हम इसे ही गंगा के नाम से जानते हैं। आगे बढ़ते हुए आप देवप्रयाग के आसपास नाश्ता भी कर सकते हैं और रास्ते में आपको छोटे बड़े होटल्स / रेस्टॉरेंट देखने को मिल जाते हैं और खाने के लगभग सभी विकल्प आपको मिल जाते हैं। सोनप्रयाग जाते समय रास्ते में पड़ने वाले सभी स्पॉट्स अपने आप में ख़ास है और आगे बढ़ते हुए आता है , अगली जगह – श्रीनगर।
- श्रीनगर, अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। इस शहर का पौराणिक लेखों में श्री क्षेत्र के नाम से उल्लेख किया गया है। श्री क्षेत्र यानी भगवान शिव की पसंद। प्रचलित कथाओं अनुसार महाराजा सत्यसंग को कठोर तपस्या के बाद श्री विद्या हासिल हुई थी, जिसके बाद उन्होंने इस विद्या से कोलासुर राक्षस का वध किया था। शहर की पुनर्स्थापना के लिए विशेष यज्ञ का आयोजन किया गया था।
प्राकृतिक दृष्टि से काफी ज्यादा उन्नत इस आकर्षक स्थल से लोग आज भी बेखबर हैं । आप यहां गर्मियों के समय सैलानियों को आराम फरमाते देख सकते हैं। यहां बहती अलकनंदा नदी और पहाड़ी घाटियां यहां का मुख्य आकर्षण हैं और इसी से लगभग 13 km की दूरी तय करते हुए आपको दर्शन होते हैं माँ धारी देवी मंदिर के।
अलकनंदा नदी पर बना यह मंदिर एक सिद्धपीठ है। मां धारी देवी का मंदिर देखने योग्य है । केदारधाम के दर्शन के पूर्व आप कुछ समय निकालकर यहाँ पर जरूर आ सकते हैं । यहां पर आपको 40 min से 1 घंटे का समय लग सकता है। मां धारी देवी के ऊपर भक्तों की अगाढ़ श्रद्धा है । कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि साल 2013 में आयी आपदा मां धारी देवी के मंदिर को शिफ्ट करने के कारण हुई थी। जो भी हो लेकिन आप अपनी लिस्ट में इस मंदिर को जरूर रखें।
यहां पर अलकनंदा नदी की बात भी कर लेनी चाहिए क्योंकि यह उत्तराखंड के सबसे मुख्य नदियों में से एक है ।
- अलकनंदा, कुछ फैक्ट्स आपको बताते चलें। देवप्रयाग तक अलकनंदा नदी की कुल लंबाई 195 km है।
- जल छमता के आधार पर अलकनंदा नदी उत्तराखंड की सबसे बड़ी नदी है।
- अलकनंदा नदी का प्रवाह उत्तराखंड के तीन जिलों चमोली ,रुद्रप्रयाग तथा पौड़ी में होता है।
- गंगा नदी में भागीरथी से ज्यादा जल अलकनंदा से आता है।
श्रीनगर और माँ धारी देवी दर्शन के बाद आपको अगला स्टॉप मिलने वाला है रुद्रपयाग। जिस रोड पर आप यात्रा कर रहे हैं इसे कुछ लोग केदारनाथ मार्ग और कुछ बद्रीनाथ रोड भी कहते हैं। आपको बता दें कि रुद्रप्रयाग से ही एक मार्ग बद्रीनाथ धाम और दूसरा मार्ग केदारनाथ धाम को जाता है।
रुद्रप्रयाग पंच प्रयागों में चौथा है जहां अलकनंदा और मंदाकिनी आपस में मिलती है। वही मन्दाकिनी नदी जो केदारनाथ शिखर से निकलती है और रुद्रप्रयाग में आकर अलकनंदा से मिल जाती है। इस संगम का नाम भगवान शिव के नाम पर पड़ा, जिन्होंने यहां अपने उग्र रूप या रुद्रावतार में तांडव किया था।
इसी तरह प्रकृति और पहाड़ों और नदियों की झलक लेते हुए आप पहुंचते हैं अगस्त्यमुनि। अगस्त मुनि मंदाकिनी नदी के तट पर हिमालय के सुंदर आकर्षण के बीच बसा एक पवित्र स्थान है। अगस्त्यमुनि एक विख्यात और छोटा सा प्राचीन काल का प्रसिद्ध गांव है। हालांकि आज आप इस जगह पर काफी सुविधाएं देख सकते हैं और रोजमर्रा के सामान के लिए दुकानें भी। यह प्रसिद्ध स्थान ऋषि अगस्त्य के गुरुकुल के रूप में उपयोग किया जाता था जिस कारण से इस गांव का नाम प्रसिद्ध ऋषि अगस्त्य के नाम पर ही अगस्त्यमुनि रखा गया।
Help Tips – यात्रा में आप अपने साथ कुछ CASH साथ ले जाना न भूलें और अगर आप ATM मशीन पीछे छोड़ आये हैं तो अगस्त्यमुनि मैन मार्किट में आपको एटीएम सुविधा मिल जायेगी जिसकी मदद आप ले सकते हैं।
अगस्त्यमुनि से आगे की रोड काफी आमतौर टूटी – फूटी मिलती है और कुंड, गुप्तकाशी होते हुए आगे सोनप्रयाग तक तो कभी कभी घंटों का जाम भी देखने को मिल जाता है। इसके लिए कुछ अतिरिक्त समय अपनी प्लानिंग में जरूर शामिल करें। अगर आप हेली सर्विसेज से केदारनाथ धाम जाने की योजना बना रहे हैं तो आपके लिए ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
हमने अपना सफर सुबह 6 बजे ऋषिकेष से शुरू किया और गुप्तकाशी तक पहुंचने में 8 घंटे का समय लगा जिसमें हमें नाश्ते मैं 40 mins, देवप्रयाग में 20 mins, माँ धारी देवी मंदिर में 45 mins और बीच में कुछ फोटोग्राफी में २०-३० mins का समय लगा। यहाँ तक मौसम ने पूरा साथ दिया। मौसम खुशनुमा, कभी हलकी धूप , कभी बादल लेकिन कहीं पर भी बारिश या लैंड स्लाइड देखने को नहीं मिली और समय रहते प्लानिंग के अनुसार हम २PM पर गुप्तकाशी पर थे।
गुप्तकाशी नाम से ही पता चलता है कि इसका मतलब है ‘छिपी काशी। गुप्तकाशी को लेकर यह पौराणिक मान्यता है कि इसका इतिहास महाभारत के समय का है। जब पांडव भगवान शिव को खोज रहे थे, तो शिव केदारनाथ जाने से पहले गुप्तकाशी में छिप गए जिससे पांडव उन्हें ढूंढ न पाएं और इसकी वजह से इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा।
अब गुप्तकाशी से ही हमें हेलीकाप्टर की मदद से बाबा केदारधाम तक पहुंचना था। अब बात कर लेते हैं हेली सर्विसेज की।
हेलीकाप्टर सेवा गुप्तकाशी, सिरसी और फाटा से उपलब्ध है और श्री केदारनाथ धाम के लिए इन जगहों से हेलीकॉप्टर सेवा बुक कर सकते हैं। बुकिंग करने के लिए चारधाम यात्रा का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होता है। ऐसा देखने को भी मिलता है कि ऑनलाइन टिकट्स मिलने में काफी परेशानियां होती हैं फिर भी किसी अपरिचित या अन्य websites से आप टिकट्स परचेस न करें। आप ऑनलाइन हेलीकॉप्टर टिकट बुक करने के लिए heliyatra.irctc.co.in पर लॉग इन कर सकते हैं।
कई बार ऐसा भी मौका हो सकता है कि आप सीधे काउंटर पर जाएँ और तत्काल की टिकट्स आपको मिल जाये लेकिन इसके लिए साफ़ तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। हमने गुप्तकाशी से ही हेलीकाप्टर टिकट्स तत्काल से ली जिसका किराया लगभग १.५ या २ गुना होता है। वैसे तो वेबसाइट पर आप हेली ऑपरेटर और किराया विवरण देख सकते हैं फिर भी काउंटर से गुप्तकाशी से केदारनाथ धाम का एक तरफ़ा किराया प्रति व्यक्ति लगभग ~ 6000 का था।
सामान्य निर्देश
General Instructions
- हेलीकाप्टर सेवा ऑनलाइन बुक करने के लिए चारधाम यात्रा पंजीकरण अनिवार्य है।
- heliyatra.irctc.co.in वेबसाइट पर singup कर आप login कर सकते हैं जिस पर आपसे ग्रुप Id पूछा जायेगा और आप बुकिंग कर सकते हैं।
- एक हेलीकाप्टर में बैठने वाले यात्रियों की कुल संख्या 7 होती है जिसमें ६ यात्री और १ पायलट शामिल होता है। वैसे यात्रियों की संख्या यात्रियों और सामान के वेट पर भी निर्भर करती है।
- रिपोर्टिंग समय निर्धारित प्रस्थान समय से 1 घंटा पहले है। यात्रियों को चेक-इन प्रक्रिया (जैसे यात्री और सामान का वेट चेक, बोर्डिंग पास इत्यादि ) . देरी से बचने के लिए 2 घंटे पहले प्रवेश बिंदु पर पहुंचने की सलाह दी जाती है।
- 02 वर्ष या उससे अधिक आयु के बच्चे को एक सीट प्रदान की जाएगी और पूरा किराया लिया जाएगा।
- प्रति व्यक्ति आप केवल २-३ kg तक का सामान ले जा सकते हैं। 80 किलोग्राम से अधिक अतिरिक्त वजन के लिए 150/प्रति किलोग्राम ।
- हेलीकॉप्टर सेवा सुबह 06:00 बजे शुरू होगी और शाम 18:00 बजे तक जारी रहेगी।
- यात्रियों का बैठना हेलीकॉप्टर लोड प्लान पर निर्भर करेगा। आवश्यकता पड़ने पर एक समूह के लोगों को अलग-अलग हेलीकॉप्टर सेवाओं के माध्यम से भेजा जा सकता है। आमतौर में १ यात्री को आगे (पायलट के साथ ) और ५ यात्रियों को पीछे वाले हिस्से में बैठाया जाता है।
- हेलीकाप्टर में बैठने से पूर्व आपको निर्देश दिए जाते हैं जिसमें आपको आपके बैठने का स्थान और कुछ अन्य जानकारियां दी जाती है और यह समय काफी कम होता है और जैसे ही हेलीकाप्टर की लैंडिंग होती है उसी समय आपको हेलीकाप्टर में बैठा दिया जाता है। अगर आपको फोटोग्राफ्स लेनी हो तो समय से प्लान कर सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप नीचे दी गयी वेबसाइट को चेक कर सकते हैं।
https://www.heliyatra.irctc.co.in/general-instructions
हैली सेवा का अपना अलग आनंद है । पहाड़ों के ऊपर से उड़ते हुए जब आप केदारघाटी को देखते हैं तो यह दृश्य आप शब्दों में नहीं बता सकते ऊपर से पायलट सीट के साथ आप एक अलग अनुभव महसूस करते हैं। इस उड़ान को अभी कुछ ही देर हुआ होता है कि कुछ ही मिनटों में आप होते हैं भोले के धाम केदारधाम में। फिर लैंडिंग के बाद अचानक आप ठण्ड का अनुभव करते हैं जहां एक ओर गुप्तकाशी में नार्मल तापमान महसूस हो रहा था वही केदारनाथ धाम का तापमान में आपको ठण्ड का अनुभव होने लगता है।
केदारनाथ कब खुलता है और कब बंद होता है 2023
यदि आप केवल चारधाम यात्रा या यहां तक कि केदारनाथ मंदिर की योजना बना रहे हैं, तो आपको मंदिर के खुलने की तारीख जानने की जरूरत है। केदारनाथ मंदिर भक्तों के लिए केवल छह माह तक ही खुलता है। मई में अक्षय तृतीया के दिन इसे खोला जाता है और दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा में इसे बंद कर दिया जाता है। उसके बाद मंदिर के कपाट छह माह तक बंद रहते हैं व भगवान शिव के प्रतीकात्मक स्वरुप को नीचे उखीमठ में स्थापित कर दिया जाता है।
केदारनाथ में रहने की व्यवस्था
केदारधाम में रहने के लिए प्रमुख रूप से २ विकल्प मौजूद हैं। पहला – GMVN कैंप और दूसरा – होटल / लॉज.
GMVN कैंप प्रायः सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और GMVN की वेबसाइट से बुक किये जा सकते हैं। कई ट्रेवल कम्पनीज भी आपको GMVN कैंप का विकल्प आपकी बुकिंग में देती हैं लेकिन मंदिर प्रांगण से ये थोड़ा सा दूर जरूर होते हैं लगभग 5०० मीटर और उससे ज्यादा। बजट में प्लानिंग कर रहे हो तो कैंप में रहने का विकल्प अच्छा हो सकता है ।
स्क्रीन पर दिए गए कैम्प्स का विवरण GMVN की वेबसाइट से लिया गया है :
अगर इसे summarize करें तो कैंप, मंदिर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर रहेगा और एक रात कैंप में रुकने का खर्च प्रति व्यक्ति लगभग 500 से 1500 के बीच रहेगा जिसमें बेसिक सुविधाओं में डिनर और हॉट वाटर मुख्य हैं। इसमें toilet /बाथरूम shared बेसिस पर होता है।
वहीँ दूसरा विकल्प होता है – लॉज बुकिंग जिसका एक रात रुकने का खर्च लगभग 1500 से 2500 प्रति व्यक्ति तक होता है। अधिकांश लॉज मंदिर के पास में ही हैं तो आप रात्रि में भी शिव दर्शन या आस पास घूम सकते हैं। लॉज में बेड होता है इसलिए साथ में बच्चे या बूढ़े हैं तो लॉज बुकिंग अच्छा विकल्प है। लॉज में कमरे के साइज छोटे होते हैं और पानी गर्म करने के लिए आयरन रोड का इंतज़ाम होता है। लेकिन लॉज बुकिंग एडवांस में लगभग १-२ महीने पहले से प्लान करके चलें। आपकी स्क्रीन पर कुछ नंबर्स और लॉज के नाम हैं जिसे हम आपके लिए अपनी लास्ट ट्रिप से लेकर आये हैं। बुकिंग के लिए आप इन नंबर्स पर भी बात कर सकते हैं।
उत्तराखंड सरकार की बात करें तो ऐसा देखने में आता है कि सरकार द्वारा भी निर्माण कार्य प्रगति पर है जिसका उद्देश्य है की पर्यटकों को रहने की अच्छी सुविधा केदारनाथ धाम में मिल पाए।
केदारनाथ में खाने की व्यवस्था
केदारनाथ में खाने के ऑप्शंस में दाल , रोटी , सब्ज़ी और चावल की थाली का कॉस्ट 200 रूपए होता है जो पर्सनली पसंद है। इसके अलावा पराठा, डोसा या मैगी जैसे ऑप्शंस भी आपको मिल जाते हैं। चाय, कॉफी और दूध भी आपको आराम से उपलब्ध हो जाती है। ट्रेकिंग में भी रास्ते भर आपको छोटी छोटी दुकानें मिल जाती हैं जहाँ पर बिस्कुट, चाय , कोल्ड ड्रिंक्स , पराठा आपको उपलब्ध हो जाता है। तो इस बात का ध्यान आप रख सकते हैं की खाने में बहुत सामान कैरी न करें। कुछ ड्राई फ्रूट्स आप अपने साथ रख सकते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा
पौराणिक कहानी के अनुसार जब महाभारत युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने और युद्ध में उनके द्वारा किए गए पापों का प्रायश्चित करने की शिक्षा दी। इसलिए, पांडव मोक्ष की तलाश करने भगवान शिव से मिलने काशी गए। कहा जाता है कि भगवान शिव कुरुक्षेत्र युद्ध में बड़े पैमाने पर रक्तपात के लिए पांडवों से नाराज थे, इस वजह से वह पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे। इसलिए, शिव ने काशी में पांडवों से मिलने से बचने के लिए एक बैल (नंदी) का रूप धारण किया और हिमालय पर चले गए। हालाँकि, जब पांडवों ने बैल को देखा और उसे पहचान लिया। पांडवों को देखते ही बैल जमीन में समाने लगे। पांडवों ने बैल को पकड़ने की कोशिश की लेकिन बैल केदारनाथ की सतह पर अपना कूबड़ छोड़कर विलुप्त हो गया। बैल के शरीर के अन्य अंग, चार अलग स्थानों पर दिखाई दिए जो है :
- तुंगनाथ में भुजाएँ,
- रुद्रनाथ में चेहरा,
- मध्यमहेश्वर में पेट,
- कल्पेश्वर में सिर / Jata।
केदारनाथ के साथ इन चार अन्य तीर्थों को पंच केदार कहते है। एक अन्य कहानी के अनुसार यह भी कहा जाता है कि बैल का कूबड़ केदारनाथ में रहा, तो सिर काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रकट हुआ। तत्पश्चात पाण्डवों द्वारा विधिवत पूजा अचना की गयी और पाण्डवों की प्रार्थना से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और महिष के पृष्ठ भाग के रूप में भगवान शंकर श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूम में अवतरित हो गये।
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा व दर्शन का समय
सुबह बाबा के कपाट खुलने का समय लगभग ६:30 का होता है। दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है। फिर भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके शाम 7 बजे से 8 बजे तक नियमित केदारनाथ जी की आरती होती है। रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है और दर्शन की जनरल पंक्ति को बंद कर दिया जाता है।
सामान्यतः २ तरह से आप बाबा केदार की पूजा व दर्शन कर सकते हैं :
- अगर आप जनरल queue में लगकर पूजा करना चाहते हैं तो आपको मॉर्निंग २-३ बजे से ही queue में लगना होगा और २ से 4 घंटे तक का समय दर्शन में लग जाता है। इसमें बिना queue के भी कई बार लोग बीच बीच में आ जाते हैं जिसके लिए कोई ख़ास व्यवस्था मंदिर में नहीं है। पंक्ति में खड़े होकर आप बाबा केदार मंदिर के वीडियो या pictures क्लिक कर सकते हैं। मंदिर के गर्भगृह में आपको दर्शन कराये जाते हैं लेकिन भीड़ भाड़ होने के कारण कई बार दूर से ही दर्शन कर आपको वापस लौटना पड़ता है। इस तरह के दर्शन आपको किसी तरह का शुल्क नहीं देना पड़ता है।
- आप मंदिर के पास में ही स्थित केदार मंदिर समिति से 5000 rs का रशीद लेकर भी पूजा कर सकते हैं। इस 5000 की राशि को ५ परिवार मिलकर भी दे सकते हैं अर्थात अगर ५ परिवार हैं तो 1000 rs एक परिवार के हिसाब से आप पूजा में शामिल हो सकते हैं परन्तु ध्यान रहे कि रात्रि में पूजा के समय १ थाल ही उपयोग में लानी होगी। विशेष पूजा के लिए आपको १५ मिन का समय दिया जाता है और आपको केदार पिंड के समीप बैठकर पूजा करने का अवसर मिल जाता है। इस तरह के दर्शन से आपको बहुत भीड़ देखने को नहीं मिलती और रात्रि में शिव के अच्छे से दर्शन आप कर पाते हैं।
मेरा सुझाव है कि आप अगर परिवार के साथ हैं या वृद्ध जन आपके साथ हैं तो जनरल लाइन में ना लगें। किसी भी तरह का कोई प्रश्न हो तो जरूर पोस्ट करें।
केदारनाथ के पास पर्यटन स्थल, केदारनाथ में घूमने की जगह
- भैरवनाथ मंदिर केदारनाथ– दारनाथ में एक और घूमने की जगह है भैरवनाथ का मंदिर। यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर दक्षिण में हैै। जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद रहते है तो भैरवनाथ जी केदारनाथ धाम की रक्षा करते है। भगवान शिवजी का ही रूप है भगवान भैरवनाथ। इन्हें भंकुट भैरव भी कहा जाता है।
- आदिगुरु शंकराचार्य समाधि केदारनाथ– केदारनाथ के पर्यटन स्थल में प्रसिद्ध है आदिगुरु शंकराचार्य जी समाधि स्थल। केदारनाथ मंदिर के पीछे कुुछ दूरी पर आदिगुरुजी का समाधि स्थल है। ऐसा कहा जाता है कि आदिगुुुरु ने 8वीं सदी में केदारनाथ मंदिर का पुनर्निमाण कराया और उसके बाद यही समाधि ले ली थी। आदिगुरु की समाधि स्थल पर उनकी बड़ी और सुंदर मूर्ती स्थापित की गयी है।
- रुद्रगुफा केदारनाथ– केदारनाथ में घूमने की खास जगह है रुद्रगुफा। यह रुद्रगुफा केदारनाथ मंदिर के बायीं तरफ लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर पहाड़ी बनी हुई है। यह गुफा का निर्माण 2019 में बनायी गयी है। इस गुफा में तत्काल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ध्यान किया था। इस गुफा में एक कक्ष भी जिसमें रूकने की व्यवस्था है। इसमें रूकने के लिए बुकिंग करानी होती हैै।
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