Choliya Dance Uttarakhand
वीरों की विरासत छोलिया नृत्य
दोस्तों क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नृत्य कौन सा है जो शादी बारातों में काफी देखने को मिल जाता है ? क्या है इसका नाम और क्या है इसका इतिहास ? आइये जानते हैं क्या है यह परंपरा, इसका इतिहास और भी बातें।
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वीरों को विरासत में मिली इस परंपरा का नाम है – छोलिया
छोलिया नृत्य उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रचलित लोकनृत्य है। यह एक तलवार नृत्य है जिसे छोलिया और हुड्केली भी कहा जाता है जो प्रमुखतः शादी-बारातों या अन्य शुभ अवसरों पर किया जाता है। छोलिया नृत्य में ढोल ,दमाऊ ,मशकबीन और तुरी आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग कर संगीत बजाया जाता है । विशेष वेश -भूषा पहनकर हाथों में तलवार और ढाल के साथ युद्ध कौशल जैसा प्रदर्शन करने वाला उत्तराखंड कुमाऊं मंडल का विशिष्ट लोक नृत्य है।
लोक भाषा में इसे छोलिया नृत्य न बोलकर छोला खेलना कहते हैं। इसमें भाग लेने वाले कलाकारों को छोल्यार कहते हैं। पिथौरागढ़ आदि क्षेत्रों में इन्हें छलेर, छलेति, छलेरिया या छोलिया कहा जाता है। अभी छोलिया कलाकार के हाथ में आप देख रहे हैं – मशकबीन। पहाड़ी में इसे “बिनबाज ” भी कहा जाता है, बड़े मंजीरे जैसा लगने वाला यह वाद्य यन्त्र है – झांझर। जिसकी झंकार छोलिया संगीत में एक अलग रंग ले आती है।
इसके अलावा दमु या दमाऊ के नाम से काफी प्रचलित वाद्य यन्त्र . यहाँ पर दमाऊ को गरम किया जा रहा है जिससे इसकी धुन और अच्छे से निकल कर आ पाए। इसका प्रयोग प्रायः ढोल के साथ किया जाता है। ये है वाद्य यन्त्र तुरी या कुछ जगहों पर इसे तुतरी भी बोला जाता है। आप भी सुनिए इसकी एक धुन।
*छोलिया नृत्य का इतिहास*
उत्तराखंड के लोकनृत्य छोलिया नृत्य के इतिहास के बारे इतिहासकारों का मानना है कि, कुमाऊं के राजाओं ने जब विजयोपरांत अपनी विजय की गाथा राजमहल में सुनाई तो ,रानियों का मन भी इस अद्भुत क्षण को देखने को हुवा तब सैनिको ने एक नृत्य के रूप में ,युद्ध के मैदान का सजीव वर्णन विजयोत्सव के रूप करके दिखा दिया। धीरे -धीरे यह लोकनृत्य के रूप में आम जनता ने अंगीकार लिया। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में आज इसे वैवाहिक अवसर पर मनोरंजन के लिए किया जाता है किन्तु यह मूलतः कुमाऊं के राजाओं के पारम्परिक संघर्षों के बाद विजयी राजा के सैनिकों द्वारा किये जाने वाला विजयोत्सव हुवा करता था।
छलिया नृत्य की वेश भूषा
इस नृत्य की एक निश्चित वेश भूषा होती है। कलाकार विशेष प्रकार की कुमाउँनी पोशाक पहेनते हैं, घेरदार सफ़ेद लम्बा चोला, सिर पर टांका, चोला तथा चेहरे पर चंदन का पेस्ट शामिल हैं। तलवार और पीतल की ढालों से सुसज्जित उनकी यह पोशाक कुमाऊं के प्राचीन योद्धाओं के सामान होती है। इस वेश भूषा के अलावा दाएं हाथ में तलवार और बायें हाथ में ढाल होती है।
*छोलिया नृत्य में गीत संगीत*
छोलिया नृत्य में संगति करने वाले वाद्य यंत्रों का भी विशेष महत्व होता है। इन वाद्य यंत्रों की लय ताल के अनुसार ही कलाकारों की मुद्राएं , भाव भंगिमाएं , पद संचालन और शस्त्र संचालन आदि का प्रदर्शन हुवा करता है।
बारातों में यात्रा के पड़ावों आदि के अनुसार वाद्यों का लय ताल आदि बदलता रहता है। बारात प्रस्थान के समय वीर रस युक्त संगीत और बारात वापसी के समय शृंगार रस युक्त संगीत का प्रयोग किया जाता है। बारातों के संदर्भ कहते हैं पहले वधु पक्ष वाले वर पक्ष के वाद्य संगीत के अनुसार बारात की दूरी का अंदाज लगा लेते थे।
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