सूर्य मन्दिर कटारमल अल्मोड़ा
सूर्य मन्दिर कटारमल अल्मोड़ा
परिचय
सूर्य – सबसे शक्तिशाली ग्रहों में से एक है, क्योंकि यह मौसम पर राज करता है। यह भी प्रचलित है, कि सूर्यदेव एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिन्हें मनुष्य अपनी नग्न आंखों से देख सकता है- प्रत्यक्ष दैवम। तो क्यों ना आज, उत्तराखण्ड में भी सूर्य मंदिर के दर्शन किए जायें । कुमाऊँ का एकमात्र और उत्तर भारत के सबसे बड़े सूर्य मंदिरों में से एक है, अलमोड़ा में स्थित Katarmal सूर्य मंदिर ।
पौराणिक उल्लेख
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर राक्षसों ने अत्याचार किये थे। उस समय, द्रोणगिरी पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (अबकी कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य-देव की स्तुति की। सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को, वटशिला में स्थापित कर दिया और लोगों की रक्षा के लिए बरगद में विराजमान हुए. तब से उन्हें यहां बड़ आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. इसी वटशिला पर कत्यूरी वंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य-मन्दिर का निर्माण करवाया । जो अब कटारमल सूर्य-मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।
कटारमल मंदिर, रानीखेत शहर से लगभग ३० km और अल्मोड़ा शहर से लगभग’ २० किलोमीटर दूर स्थित है और यह 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
कटारमल मंदिर, एक सुंदर और दर्शनीय सूर्य मंदिर है जिसे बड़आदित्य मंदिर भी कहा जाता है। कटारमल मंदिर को, कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है। कोसी नदी के पास अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग पर एक अलग सड़क लगभग तीन किलोमीटर जाती है – कटारमल। कुछ लोग इस दूरी को पैदल भी तय कर लेते हैं, लेकिन, आप अपनी कार से भी मंदिर के पास तक पहुँच सकते हैं जहां से आपको कटारमल मंदिर के लिए ५०० मीटर की दूरी पैदल ही तय करनी होगी.
यही पर कार को पार्किंग पर लगाकर आप बढ़ते हैं कटारमल सूर्य मंदिर की ओर। प्रसाद की १-२ दुकानें आपको मंदिर के आस पास मिल जाएंगी।
कटारमल गाँव की सुंदरता देखते हुए आप रस्ते पर जैसे ही आगे बढ़ते हैं तो पत्थरों से निर्मित रास्ता और साथ में लगी दीवार इस रास्ते को और भी ज्यादा सुन्दर बना देती है।
क्योंकि रास्ता गांव के बीच से होकर जाता है तो प्रकृति की सुंदरता के साथ साथ आपको पहाड़ी फल दिखना भी लाज़मी है। साथ ही रस्ते में आते जाते लोग आपको मिलते जायेंगे।
कुछ ही देर में आपको मंदिर का दृश्य दिखने लगता है। यहाँ से मंदिर तक की दूरी बहुत कम बची है। ऊचाई पर जाने के साथ आस पास की पहाड़ियों के दृश्य और मनमोहक होते जाते हैं। सच में आपको यहाँ से दिखने वाले दृश्य काफी मनोरम होते है। मंदिर के ठीक बाहर कटारमल का सूर्य मंदिर दिखने में कुछ ऐसा है।
आइये करते हैं मंदिर परिसर के दर्शन और जानते हैं क्या खास हैं मंदिर में खास।
स्थानीय लोगों किए मानें तो इन मंदिरों का निर्माण एक रात में हुआ है जो की अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं। कुछ वृद्ध और स्थानीय लोगों ने मंदिर को प्राचीन काल का बताया जाता है और भगवान की मूर्ति पर सूर्य की किरणें पड़ते हुए साक्षात् देखा है. 22 अक्टूबर को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन जाते हैं, तब सूर्य की किरणें प्रतिमा पर पड़ती है और जब दक्षिणायन से उत्तरायण सूर्य जाते हैं, तो 22 फरवरी को सूर्य की किरणें भगवान की प्रतिमा पर पड़ती हैं.
पूर्व की लगभग हर सरकार ने इस मंदिर को अनदेखा जरूर किया है लेकिन वर्तमान की धामी सरकार में यह मंदिर अपने अच्छे भविष्य के सपने संजोये हुए है। आशा करते हैं कि पर्यटन के लिहाज़ से इस मंदिर को और भव्यता मिलेगी।
इसी आशा के साथ आज के लिए इतना ही।
जय भारत जय उत्तराखंड
लेखक : हेम गयाल।
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