बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा?
बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा?
चूहे सदा बिल्ली से भयभीत रहते हैं।
कारण यह है कि वह चूहे को देखते ही उसे मारकर खा जाने के लिए दौड़ती है।
जैसे ही चूहा उसकी पकड़ में आ जाता है, वह उसका काम तमाम कर देती है।
इसी विषय में एक बार चूहों ने सभा की।
एक बूढ़े चूहे को उस सभा का सभापति बनाया गया।
उसने कहा, फ्बिल्ली हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है।
वह दबे पाँव आती है और छिपकर बैठ जाती है।
जैसे ही उसकी निगाह चूहे पर पड़ती है,वह तुरंत झपटकर उसे खा जाती है।
इस तरह से तो हमारा वंश ही समाप्त हो जाएगा। इसके लिए कोई उपाय अवश्य सोचना चाहिए।
सभापति की बात से सभी सहमत थे।
वे सब विचार करने लगे।
विचार करते-करते एक चूहा खड़ा हुआ और बोला, मेरे पास एक उपाय है।
उपाय यह है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँध दी जाए।
फिर वह कितने ही दबे पाँव से क्यों न आए, उसके गले में बँधी घंटी की आवाज से हम सावधान हो जाएँगे और बिलों में घुस जाएँगे।
उपाय बहुत बढि़या था, पर सवाल उठा कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा?
सभी चूहे इस चिंता में लीन होकर विचार करने लगे।
थोड़ी देर में चूं-चूं नाम का चूहा बोला, यह काम मैं करूँगा।
चूं-चूं की माँ ने घबराकर उसे चुप कराते हुए कहा, चूं-चूं! बिल्ली बहुत चालाक है।
तुम उसके गले में घंटी नहीं बाँध पाओगे।
चूं-चूं बोला, माँ! तुम देखती रहो। मैं ऐसी तरकीब से काम लूँगा कि साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।
अगले दिन चूं-चूं अपने बिल में आराम कर रहा था।
तभी बिल्ली उधर आ गई।
चूं-चूं धीरे-धीरे आवाज करने लगा।
बिल्ली आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगी।
तभी चूं-चूं ने बिल में से आवाज लगाई, बिल्ली मौसी! राम-राम।
बिल्ली ने उसे आशीर्वाद दिया।
चूं-चूं बिल में से ही बोला, मौसी! तुम हमेशा चूहों को मारकर खाती हो।
न मालूम अब तक तुमने कितने चूहे खा लिए होंगे!
तुम बूढ़ी हो गई हो, पर अब भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आई।
अरे, अब तो तुम्हें इन हरकतों पर शरम आनी चाहिए।
बिल्ली बहुत चालाक थी।
वह मीठी वाणी में बोली, ठीक कहते हो, मेरे बच्चे! सचमुच मुझे शरम आ रही है कि मैंने इतनी हत्याएँ कीं।
आगे से मैं ऐसा नहीं करूँगी।
जीवन में अब तक मैं नौ सौ चूहे खा चुकी हूँ, परंतु अब मैं तीर्थ कर आई हूँ।
तुम बाहर आकर तो देखो, मेरे गले में माला पड़ी है।
मैं अपना शेष जीवन पूजा-पाठ में व्यतीत करना चाहती हूँ।
अब चूहे मारने का पाप नहीं करूँगी।
चूं-चूं भी कम चालाक नहीं था। उसने कहा, फिर तुम्हारी पेट-पूजा कैसे होगी?
बिल्ली बोली, कोई रोटी या दूध देगा तो खा-पी लूँगी, नहीं तो उपवास कर लूँगी।
अब तुम मुझसे मत डरो और मेरे पास आ जाओ।
चालाक चूं-चूं ने कहा, मौसी! क्यों झूठ बोल रही हो?
हमें तो विद्वान साधु मणिचंद ने बताया था कि जो बिल्ली तीर्थयात्र करके आती है, उसके गले में घंटी बँधी रहती है।
अगर तुमने तीर्थयात्र की होती, तो तुम्हारे गले में माला के साथ-साथ घंटी भी बँधी होती।
बिल्ली सोचने लगी, ‘यदि मेरे गले में घंटी बँध जाए तो सभी चूहों को विश्वास हो जाएगा कि मैं तीर्थयात्र करके आई हूँ।
फिर सारे चूहे निर्भय होकर घूमने लगेंगे और मैं आराम से उन्हें खाती रहूँगी।’
यह सोचकर वह बोली, बेटे! तीर्थयात्र से मैं घंटी तो लाई थी,
परंतु मैंने सोचा कि माला से ही लोग समझ लेंगे कि अब मैं हिंसा नहीं करूँगी।
लेकिन तुम्हारा यही विचार है तो मैं घंटी बाँधकर आती हूँ।
थोड़ी देर बाद जब बिल्ली घंटी बाँधकर आई तो सारे चूहे सावधान हो गए।
इसके बाद जब भी बिल्ली आती, तो चूहे भाग जाते।
इस प्रकार चूं-चूं ने बिल्ली के गले में घंटी बँधवा दी।
बल से बुद्धि श्रेष्ठ है।