बालक चन्द्रगुप्त
बालक चंद्रगुप्त, पाटलिपुत्र नगर के प्रांत में पिपली कानन के मौर्य सेनापति के वैभवहीन घर के सामने कुछ बालक खेल रहे थे। एक बालक बड़े से पत्थर पर राजा बना बैठा है, साथ में और तीन चार छोटे पत्थरों पर मंत्री और सेनापति बने बालक बैठे हैं, एक बालक द्वारपाल बनकर खड़ा है। मंत्री जी! जी महाराज , मंत्री जी, राज्य में ढिंढोरा पिटवा दीजिए की मुसीबत में पड़े हुए प्रजाजन मेरे पास आए। मेरी प्रजा के लिए मेरे राज्य का द्वार हमेशा खुला है। जी महाराज, मंत्री जी प्रजा का दुख मेरा दुख है और प्रजा का सुख मेरा सुख है। भंडार और खजाने प्रजा के लिए खोल दीजिए। जी महाराज, जैसे आपकी आज्ञा महाराज (झुक कर) महाराज की जय हो। आपके दर्शन के लिए एक ब्राह्मण आए हैं। आदर सहित हमारे समक्ष उपस्थित किया जाए । द्वारपाल के साथ चाणक्य का प्रवेश। ब्राम्हण देवता मेरा प्रणाम स्वीकार हो। आयुष्मान हो ! ब्राह्मण देवता , बताइये कैसे आना हुआ। महाराज , मैं अत्यंत दरिद्र ब्राह्मण हूँ। आपसे कुछ याचना करना चाहता हूँ।
जी हाँ , ब्राह्मण देवता आदेश कीजिए। मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। आप संकोच मत कीजिए आपकी इच्छा अवश्य पुरी की जाएगी। राजन , मुझे दूध पीने के लिए गऊ चाहिए। सामने खेत में चरती हुई गाय दिखाकर। ब्राह्मण देवता , इन गायों में जो गाय चाहो आप लेजा सकते हैं ।
हँसकर , राजन ये जिसकी गाय हैं। वह मारने लगे तो , किसका साहस है जो मेरे शाशन को ना माने। जब मैं राजा हूं तब मेरी आज्ञा
अवश्य मानी जाएगी आप निर्भय होकर गाय ले जाइए। चंद्रगुप्त की माँ मुरा का प्रवेश। क्षमा! कीजिए ब्राह्मण देवता, यह बहुत ही दृष्टि लड़का है इसके किसी अपराध पर ध्यान नहीं दीजिएगा।
अरे नहीं – नहीं , ये बड़ा होनहार , बालक है। तुम इसकी मानसिक उन्नति के लिए , इसे किसी प्रकार राजकुल में भेजो। रोते हुए! हमलोगों पर राजकोप है। मेरे पति राजा की आज्ञा से बंदी बनाए गए हैं। बालक का कुछ अनिष्ट न होगा। तुम इसे अवश्य राजकुल में ले जाओ। मैं कोशिश करुँगी महाराज। नन्द निष्ठुर है और उसकी सभा चापलूस मूर्खों से भरी रहती है। आप चिंता मत कीजिए , आपका बालक बहुत होनहार है। यह अपनी बुद्धि से अवश्य कोई चमत्कार करके स्थान बना लेगा।
मगध नंद के दरबार में सभासद बैठे हैं। सिंहासन पर राजा नंद बैठे हैं। लोहे के पिंजरे में शेर की मूर्ति है। शाभासदों , इस लोहे के पिंजरे को बिना तोड़े शेर को बाहर निकलकर अपनी शक्ति का परिचय दीजिए। जो व्यक्ति ऐसा करेगा , उसे 1000 सोने की मोहरे पुरस्कार में दी जाएंगी। सबलोग एकदूसरे का मुँह तकते हैं। सिंह को ध्यान से , देखते हुए , महाराज मैं पिंजरे को तोड़े बिना शेर को निकल सकता हूँ। आश्चर्य से , तुम , यह कौन है ! महाराज यह राजबंदी मौर्य सेनापति का लड़का है। क्रुद्ध होकर ! यदि इसे न निकाल सको तो तुम्हें भी इस पिंजरे में बंद कर दिया जाएगा।
हे भगवान ! यह भी कहाँ से विपत्ति आई। निर्भीकता से , जी महाराज , मुझे स्वीकार है। यदि निकाल दूँ तो , मेरी इच्छा पूरी की जाय। ठीक है। महाराज मुझे गरम सलाखायें चाहिए। गरम सलाखाओं से शेर को पिघला कर पिंजरे को खाली कर दिया।
सब लोग चकित होकर देखते हैं। महाराज यह मॉम का बना हुआ शेर था। शाबाश , तुम वास्तव में प्रशंसनीय हो , तुम बहुत बुद्धिमान हो उसे तरसने के लिए तुम्हारी शिक्षा की व्यवस्था राज्य की ओर से तक्षशिला विश्वविद्यालय में की जाती है। धन्यवाद महाराज , (मंत्री से) मंत्री जी , राजकोष से इसे 1000 सोने की मोहरे प्रदान की जाए। जैसे महाराज की आज्ञा। महाराज मुझे स्वर्ण मुद्रा नहीं चाहिए , बल्कि मेरी एक इच्छा पुरी की जाए। स्वर्ण मुद्रा तो तुम्हारा पुरुस्कार है , अपनी इच्छा बताओ , वह भी पुरी की जाएगी। महाराज , मेरे पिताजी को आपने बंदी बनाया है। आप उन्हें छोड़ दीजिये। ठीक है , उन्हें छोड़ दिया जायेगा।
बालक चंद्रगुप्त में बचपन से नेतृत्व शक्ति विद्यमान थी। यही बालक चाणक्य की सहायता से चक्रवर्ती सम्राट हुआ। जो इस के 321 वर्ष पूर्व मगध में पाटलिपुत्र के राज सिंहासन पर बैठा और अपने बाहुबल से सिकंदर के यूनानी साम्राज्य के आतंक से भारत को स्वतंत्र किया।